नमाज के बाद की दुआ | Namaz Ke Baad Ki Dua

नमाज़ दीन का सुतून है और अल्लाह से राब्ता करने का सबसे बेहतरीन ज़रिया है। जब हम सलाम फेरकर नमाज़ मुकम्मल कर लेते हैं, तो वो वक़्त दुआ की क़ुबूलियत का एक ख़ास लम्हा होता है।
हमारे प्यारे नबी, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुद फ़र्ज़ नमाज़ों के बाद कुछ ख़ास ज़िक्र, तस्बीहात और दुआओं का एहतिमाम फ़रमाते थे।
इस आर्टिकल में हम उन्हीं मसनून (सुन्नत से साबित) दुआओं और अज़कार का ज़िक्र करेंगे। जिन्हें हर मुसलमान को अपनी जिंदगी में आदत बना लेनी चाहिए।
नमाज़ के बाद दुआ की फजीलत
क़ुरआन और हदीस में नमाज़ के बाद दुआ करने की बहुत ही बड़ी फजीलत बताई गई है। इस वक़्त दुआ करने की बहुत ही अहम अहमियत है।
- हदीस में आता है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“दुआ इबादत का निचोड़ है” - नमाज़ के बाद इंसान का दिल सबसे ज़्यादा नर्म और अल्लाह की रहमत से क़रीब होता है। यही वजह है कि नमाज़ के बाद दुआ करने से दुआ के क़ुबूल होने की उम्मीद और बढ़ जाती है।
नमाज़ के बाद की मस्नून दुआएँ
जैसे ही इमाम या आप अकेले नमाज में सलाम फेरते है, उसके बाद कुछ मस्नून दुआएँ पढ़ी जाती है। जिसके बारे में आइए हम नीचे जानते है।
1. इस्तिग़फ़ार
सबसे पहले नमाज़ के बाद तीन बार “अस्तग़फ़िरुल्लाह” पढ़ना मस्नून है।
अस्तग़फ़िरुल्लाह
यह अल्लाह मेरी गुनाहों को माफ आता फरमा।
2. नमाज़ के बाद की मशहूर दुआ
اللَّهُمَّ أَنْتَ السَّلَامُ وَمِنْكَ السَّلَامُ، تَبَارَكْتَ يَا ذَا الْجَلَالِ وَالإِكْرَامِ
Allahumma anta-s-salaamu wa minka-s-salaam, tabaarakta yaa dhal-jalaali wal-ikraam.
अल्लाहुम्मा अन्तस्-सलामु व मिन्कस्-सलामु, तबारक्ता या ज़ल-जलालि वल-इकराम।
(ऐ अल्लाह! तू ही सलामती वाला है और तेरी ही तरफ़ से सलामती है। तू बड़ा बरकत वाला है, ऐ बुज़ुर्गी और इज़्ज़त वाले ।)
3. तस्बीह-ए-फ़ातिमा
यह वह मशहूर तस्बीह-ए-फ़ातिमा है। जिसे पढ़ने की बहुत ही ज्यादा फजीलत हदीशो में बयान किया गया है। इस नमाज के बाद पढ़ा जाता है।
- सुब्हान-अल्लाह (سُبْحَانَ اللهِ) – 33 मर्तबा
- अल्हम्दुलिल्लाह (اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ) – 33 मर्तबा
- अल्लाहु अकबर (اَللّٰهُ أَكْبَرُ) – 34 मर्तबा
जब आप तस्बीह-ए-फ़ातिमा पढ़ ले। उसके बाद एक मर्तबा यह कालिमा पढ़े।
لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيْكَ لَهٗ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلٰی كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ
ला इला-ह इल्लल्लाहु वह्-दहू ला शरी-क लहू, लहुल् मुल्कु व लहुल् हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर।
तर्जुमा:
अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं। उसी की बादशाही है और उसी के लिए तमाम तारीफें हैं और वह हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है।
इस कालिमा का फजीलत
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया: जो शख़्स हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद यह तस्बीह पढ़ेगा। उसके गुनाह बख़्श दिए जाएंगे। चाहे, वो समंदर के झाग के बराबर ही क्यों न हों। (सहीह मुस्लिम)
4. आम दुआएँ
नमाज़ के बाद इंसान अपनी ज़रूरत और दिल की ख्वाहिश के मुताबिक़ कोई भी दुआ माँग सकता है, जैसे:
- रिज़्क़-ओ-रोज़ी की बरकत के लिए
- तंदुरुस्ती के लिए
- गुनाहों की माफ़ी के लिए
- माँ-बाप की सलामती और मग़फ़िरत के लिए
- उम्मत-ए-मुस्लिमाह की भलाई के लिए
निष्कर्ष
नमाज़ के बाद की ये दुआएं और अज़कार सिर्फ़ कुछ अलफ़ाज़ नहीं, बल्कि अल्लाह से हमारे ताल्लुक़ को मज़बूत करने, अपने गुनाहों की माफ़ी मांगने और अल्लाह की बड़ाई बयान करने का एक बेहतरीन ज़रिया हैं। ये हमें मौक़ा देते हैं कि हम कुछ पल ठहर कर अल्लाह को याद करें।
इन मसनून आमाल को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाना दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाबी की कुंजी (चाबी) है। अल्लाह हम सबको इन पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।