रोज़ा खोलने की दुआ | Roza Kholne Ki Dua

रमज़ानुल मुबारक का महीना अल्लाह तआला की तरफ से रहमत, बरकत और मग़फिरत से भरपूर होता है। इस महीने में मुसलमान दिनभर अल्लाह की रज़ा के लिए भूखा-प्यासा रहकर अपने नफ़्स को काबू में रखता है। जब शाम का वक्त आता है और रोज़ेदार रोज़ा खोलता है तो यह पल अल्लाह के नज़दीक बेहद क़ीमती माना जाता है।
हदीस शरीफ़ में आया है कि: “रोज़ेदार के लिए दो ख़ुशियाँ हैं: एक रोज़ा खोलते समय और दूसरी अपने रब से मिलने के वक्त।”
(सहीह बुख़ारी, सहीह मुस्लिम)
इसीलिए रोज़ा खोलने के वक़्त दुआ पढ़ना सुन्नत है और यह रोज़े की क़ुबूलियत और सवाब का ज़रिया भी है।
रोज़ा खोलने की दुआ
اللَّهُمَّ إِنِّي لَكَ صُمْتُ وَبِكَ آمَنْتُ وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ وَعَلَى رِزْقِكَ أَفْطَرْتُ
अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुम्तु, व बिका आमन्तु, व अलैका तवक्कलतु, व अला रिज़्क़िका अफ़्तरतु
तर्जुमा:
ऐ अल्लाह! मैंने तेरी ख़ातिर रोज़ा रखा, और तुझ पर ईमान लाया, और तुझ पर भरोसा किया, और तेरे दिए हुए रिज़्क़ से मैंने इफ़्तार किया।
Roza Kholne Ki Dua
Allahumma inni laka sumtu, wa bika aamantu, wa ‘alayka tawakkaltu, wa ‘ala rizqika aftartu.
Tarjuma:
Aye Allah! Maine teri khatir roza rakha, aur tujh par imaan laya, aur tujh par bharosa kiya, aur tere diye hue rizq se maine iftar kiya.
रोज़ा खोलने का सुन्नत तरीका
इफ़्तार का वक़्त होते ही जल्दबाज़ी करना सुन्नत है। रोज़ा खोलने का तरीक़ा भी हदीस में बताया गया है:
1. अज़ान-ए-मग़रिब: जब मगरिब का अज़ान हो जाए, तो उसके बाद फौरन रोजा खोल लेना चाहिए। अगर ज्यादा देर करते है, तो यह सुन्नत के खिलाफ है और रोजा मकरू होता हैं।
2. खजूर या पानी से इफ़्तार: हज़रत अनस (र.अ.) से रिवायत है कि नबी ﷺ सूरज ग़ुरूब होने से पहले कुछ ताज़ा खजूरों से इफ़्तार फ़रमाते थे। अगर ताज़ा खजूरें न हों, तो सूखी खजूरों से और अगर वह भी न हों तो पानी से इफ़्तार किया करते थे।
(अबू दाऊद, तिर्मिज़ी)
3. दुआ पढ़ें: इफ़्तार करने से पहले ऊपर बताई गई दुआ पढ़ें।
4. दुआ क़ुबूल होने का वक़्त: इफ़्तार के वक़्त दिल से मांगी गई दुआ अल्लाह क़ुबूल करता है। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, “इफ़्तार के वक़्त रोज़ेदार की दुआ रद्द नहीं होती।”
(इब्ने माजा)
इफ़्तार की फ़ज़ीलत
1. दुआ की क़ुबूलियत का लम्हा: रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि “तीन लोगों की दुआ कभी रद्द नहीं होती, रोज़ेदार की रोज़ा खोलते समय की दुआ, इंसाफ़ करने वाले हाकिम की दुआ और मज़लूम की दुआ।”
(तिर्मिज़ी)
2. गुनाहों की माफ़ी: इफ़्तार के वक़्त सच्चे दिल से की गई तौबा और दुआ से अल्लाह तआला गुनाहों को माफ़ कर देता है।
3. जन्नत का सबब: हदीस में है कि जो शख़्स किसी रोज़ेदार को इफ़्तार कराए, उसे भी रोज़ेदार जितना ही सवाब मिलता है और रोज़ेदार के सवाब में कोई कमी नहीं आती।
4. अल्लाह की ख़ुशी: जब एक रोज़ेदार अल्लाह के हुक्म पर अपना रोज़ा खोलता है तो अल्लाह तआला उससे बहुत ख़ुश होता है।
निष्कर्ष
रोज़ा खोलना सिर्फ़ भूख-प्यास ख़त्म करना नहीं, बल्कि यह एक इबादत का हिस्सा है। हमें सुन्नत के मुताबिक़ रोज़ा खोलना चाहिए और इफ़्तार के इस मुबारक वक़्त को दुआओं में बिताना चाहिए।
अल्लाह हम सबकी इबादतों और दुआओं को क़ुबूल फ़रमाए। आमीन।